चारे को सोना बनाने वाले आरके राणा की कहानी

राजनीतिक संवाददाता द्वारा
पटना :आरके राणा पहले एक मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव थे। बाद में नौकरी छूट गई तो पशु चिकित्सक की डिग्री हासिल कर ली। बिहार सरकार के पशुपालन विभाग में काम करने लगे। राणा को लालू यादव में काफी समानताएं दिखाईं दी। वे भी एक यादव भाई थे, उसी परिसर में रहते थे। राणा ने श्याम बिहारी के अलावा पटना शाखा के डायरेक्टर डॉक्टर रामराज से भी लालू का परिचय कराया। लालू के सीएम बनने के बाद घोटाले को अंजाम तक पहुंचाने का तरीका बेहद आसान था। जानिए कैसे हुआ पूरा खेल।
चारा घोटाले में सजायाफ्ता रबींद्र कुमार राणा का आज यानी बुधवार को एम्स में निधन हो गया। उधर एक और सजायाफ्ता और चारा घोटाले के किंगपिन कहे जाने वाले लालू यादव की तबीयत भी नासाज है। लालू आज काफी दुखी होंगे क्योंकि राणा के साथ उनकी दोस्ती सीएम बनने के पहले से थी। लालू यादव का चारा घोटाले और उसके पात्रों से संबंध लंबा और करीबी था। अस्सी के दशक के मध्य में लालू यादव पटना के वेटनरी कॉलेज में क्लर्क की नौकरी करने वाले भाई के साथ रहते थे. लेकिन उनकी जरूरतें बढ़ती जा रही थी। नौ में सात बच्चों का जन्म हो चुका था। लिहाजा फुलवरिया की खेती से काम चलाना मुश्किल था। इसी समय उनके आस-पास दो लोग थे जो लालू के बेहद करीब होते गए। एक थे रंजन यादव जो लालू के बौद्धिक बैंक साबित हुए। दूसरा, रबींद्र कुमार राणा यानी आरके राणा। पशु चिकित्सक जो चारा घोटाले का मुख्य खिलाड़ी बनने वाला था। राणा एक ऐसे व्यक्ति थे जिन्हें अमीर बनने की जल्दी थी और ऐसे व्यक्तियों के लिए विधायक उपयोगी लोग होते हैं। आरके राणा ने ही लालू का परिचय रांची में पशुपालन विभाग के डायरेक्टर श्याम बिहारी सिन्हा से कराया। ये महाशय राज्य सरकार के चारे को व्यक्तिगत सोने में बदलने में व्यस्त थे।
राणा पहले एक मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव रहे। बाद में नौकरी छूट गई तो पशु चिकित्सक की डिग्री हासिल कर ली। बिहार सरकार के पशुपालन विभाग में काम करने लगे। राणा को लालू यादव में काफी समानताएं दिखाईं दी। वे भी एक यादव भाई थे, उसी परिसर में रहते थे। राणा ने श्याम बिहारी के अलावा पटना शाखा के डायरेक्टर डॉक्टर रामराज से भी लालू का परिचय कराया। लालू के सीएम बनने के बाद घोटाले को अंजाम तक पहुंचाने का तरीका बेहद आसान था। फर्जी बिल दो और सरकारी खजाना चूस लो। उदाहरण के लिए श्याम बिहारी सिन्हा ने एक बिल 50 करोड़ रुपए का बनाया। ये पशुपालन विभाग में सुअरों और दवाओं के आयात के लिए था। न कभी सुअर आए , न दवा आई।
तबके सीबीआई डायरेक्टर जोगिंदर सिंह ने अपनी किताब में लिखा है- जांच के दौरान कई सप्लायर्स ने माना कि वास्तव में सप्लाई कभी हुई ही नहीं। वे अधिकारियों के कहने पर झूठ बिल बनाते और कुल भुगतान का 75 से 80 प्रतिशत घोटाले के मुख्य आरोपी को दे देते थे। कुछ ने कहा कि उनकी कंपनी ने वो दवाइयां कभी बनाई ही नहीं। इन सामानों के ट्रांसपोर्टेशन के लिए गाड़ियों के रजिस्ट्रेशन नंबर भी झूठे थे। कुछ तो स्कूटर के निकले।
दरअसल जब 10 मार्च 1990 को गांधी मैदान में लालू यादव अतीत के कुकर्मों को सुधारने और एक नई पहल करने का वादा कर रहे थे उस समय वो पशुपालन विभाग की लूट के बारे में जानते थे क्योंकि ये तो जगन्नाथ मिश्र के जमाने से ही हो रहा था। बतौर विपक्ष के नेता भी उनकी भागीदारी थी। जोगिंदर सिंह लिखते हैं – जनता दल नेतृत्व के चुनाव की पूर्व संध्या को श्याम बिहारी सिन्हा ने आरके राणा की मौजूदगी में लालू यादव को पॉलिथीन के दो थैले दिए जिसमें पांच लाख रुपए थे। श्याम बिहारी लालू को रकम की अदायगी राणा के जरिए ही करते थे। घोटाले के गवाह आरके दास और दीपेश चंडोक ने मजिस्ट्रेट के सामने ये खुलासा किया था।
लालू ने घोटाले के एवज में वो सबकुछ किया जो वो कर सकते थे। डॉक्टर रामराज का प्रमोशन, श्याम बिहारी का एक्सटेंशन। श्याम बिहारी तो रांची के बिशप स्कॉट में पढ़ने वाली लालू की बेटियों के स्थानीय अभिभावक थे। उधर आरके राणा बार-बार राजस्थान के मेयो कॉलेज जाते रहते थे, जहां लालू का बेटा पढ़ता था। आरके राणा बाद में सांसद भी बने थे।

Related posts

Leave a Comment